भूमिहार कौन होते हैं ? इतिहास एवं परिचय - हिंदी में | Bhumihar Caste in Hindi

भूमिहार जाती (Bhumihar Caste) - आज इस लेख में भूमिहार वंश का परिचय के बारे में बात करेंगे। अगर आप भी भूमिहार जाति के इतिहास (Bhumihar Caste in Hindi) के बारे में जानकारी पाना चाहते हो तो इस लेख को अंत तक पढ़ सकते हो।

भूमिहार कौन हैं ? इतिहास एवं परिचय - जाने हिंदी में | Bhumihar Caste in Hindi

भूमिहार वंश का परिचय -

प्राचीन काल में हिंदू धर्म को 4 वर्णों में बांटा गया था - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। और ब्राह्मण, दो प्रकार के माने गए हैं। 

i.) प्रवृत्त (कर्मकांड कराने वाले)

ii.) निवत (ज्ञानी)

जो प्रवृत्त होते हैं, वे कर्मकांड करवाते हैं और उसके बदले में दान - दक्षिणा लेते हैं। और निवत  दान दक्षिणा नहीं लेते हैं,  परंतु अपने कार्य एवं चिंतन से समाज की सेवा करते रहते हैं। भूमिहार ऐसे ही ब्राह्मण में आते हैं।

भूमिहार का संधि विच्छेद है - भूमि + हार, यानी की भूमि का हरण करने वाला या भूमि का मालिक (स्वामी).

भूमिहार शब्द का सबसे पहले सरकारी कागजों में प्रयोग सं 1850 ईस्वी में हुवा। और भूमिहार शब्द को बल तब मिला जब काशी नरेश, महाराजा ईश्वरी प्रसाद सिंह ने भूमिहार ब्राह्मण सभा की स्थापना की।

पंडित वेंकटेश नारायण तिवारी के अनुसार "भूमिहार ब्राह्मण वे हैं जिन्हें सैनिक ब्राह्मण कहा जाता हैं। "

भूमिहार को देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। जैसे कि नम्बूदी, क्षितिपावल, महिपाल, अय्यर, आयंगर, आदि।

भूमिहार शिरोमणि स्वामी सहजानंद के अनुसार - भूमिहार ब्राह्मण, वे ब्राह्मण है जिन्होंने सांसारिक कार्यों को करने के बदले भूमि संबंधी अधिकार स्वतः प्राप्त किया था। जिस व्यक्ति को उक्त लौकिक कार्यों के बदले उक्त अधिकार मिलता था उसे भूमिहार कहा जाता था। 

अंग्रेज विद्वान मिस्टर विम्स ने लिखा है, "भूमिहार एक उच्च किस्म की मर्दानी प्रजाती है, जिनमें आर्य जाति जैसी सभी विशिष्टताएं विद्यमान होती है। फिर भी स्वभाव से ये निर्भीक व उपद्रवी किस्म के होते हैं। 

भूमिहार के बारे में कहा जाता है कि जब क्षत्रियों ने धरती पर अत्याचार किया था तब भगवान परशुराम ने उन अत्याचारियों का नाश कर संपूर्ण भूमि को महर्षि कश्यप एवं अन्य सुपात्र ब्राह्मणों को दे दी थी। जो अध्ययन, अध्यापन के अलावा समाज एवं देश के रक्षार्थ हथियार उठाने में सक्षम तथा प्रजा पालन और शासन व्यवस्था में निपुण थे। "

शास्त्रों एवं विद्वानों की दृष्टि में रामायण एवं महाभारत काल में अप्रतिग्राही ब्रह्मनों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। महाराजा दशरथ के राज्य में रहने वाले ऐसे ब्राह्मणों को श्रेष्ठ ब्राह्मण कहा गया है। 

स्वकर्म निरता नित्यं ब्राह्मण विजितेन्द्रिया।

दाना ध्ययन शिलाश्च संयताश्च अप्रतिग्रहे।।

(बालकाण्ड)

महाभारत में भी अप्रतिग्राही ब्राह्मणों का वर्णन मिलता है। शांति पर्व के 199वें अध्याय में राजा इच्छवाकु ने एक अयाचक ब्राह्मण को जब धन देना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया।

गुरु द्रोणाचार्य ने राजकुमारों की शिक्षा - दीक्षा के बदले दिए गए दान में राजभवन व लाखों मुद्राएं आदि स्वीकार नहीं किए और बुद्धि एवं बाहुबल से राजा द्रुपद को पराजित कर न केवल अपने अपमान का बदला लिया बल्कि आधा राज्य अपने पास रख कर आधा उन्हें वापस कर दिया। 

इस प्रकार द्रोणाचार्य ने एक संदेश दिया कि अप्रतिग्राही ब्राह्मणों को अपमान असहय है और उनका अनादर करने वाले को परिणाम भुगतना ही पड़ता है।

धन्यवाद !!

सौजन्य - मृष्णमुरारी राय (ब्रह्मऋषि कल्याण समाज) 

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