Indian Scientists and their Inventions - क्या आप भी भारतीय वैज्ञानिकों के नाम और उनके आविष्कार के बारे में जानकारी चाहते हैं ? अगर हाँ ! तो आप बिल्कुल सही जगह पर आ गए हो।
क्यूंकि इस लेख को पढ़ने के बाद आपको 20 भारतीय वैज्ञानिकों के नाम और उनके आविष्कार के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल जाएगी।
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भारतीय वैज्ञानिकों के नाम और उनके आविष्कार | Indian Scientists and their Inventions in Hindi :
1. आर्यभट्ट
आर्यभट्ट का जन्म पटना के कुसुमपुर में 13 अप्रैल, 476 ई. में गुप्तकाल में हुआ था। उनके तीन प्रमुख ग्रंथ हैं- 'दशगीतिका', 'आर्यभटीयम्' तथा 'तंत्र' ।
आर्यभट्ट ने भारतीय गणित और ज्योतिष के विलक्षण ग्रंथ 'आर्यभटीयम्' की रचना मात्र तेईस साल की आयु में की थी ।
उनका यह भी मानना था कि पृथ्वी एक महायुग में 1,58,22,37,500 बार घूमती है ।
उन्होंने सूर्य और चंद्रग्रहण के सही कारण का पता लगाया और इस निर्णय पर पहुँचे कि चंद्रमा और पृथ्वी की परछाईं पड़ने से ग्रहण पड़ता है । आर्यभट्ट ने ही सबसे पहले बीजगणित का ज्ञान विस्तार से बताया।
विज्ञान में उनके अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उनके सम्मान में अपने प्रथम कृत्रिम उपग्रह का नाम 'आर्यभट्ट' रखा।
इतना ही नहीं, दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा सन् 2009 में खोजी गई बैक्टीरिया की एक प्रजाति का नाम उनके नाम पर 'बैसिलस आर्यभट्ट' रखा गया है ।
भारतीय विज्ञान की प्रगति की राह आर्यभट्ट से ही प्रारंभ होती है।
2. डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन
मनकोंबू संबमिनाथन स्वामीनाथन एक भारतीय जेनेटिक वैज्ञानिक थे। वे भारत में हरित क्रांति के जनक हैं। उनका जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंबकोनम में हुआ था।
फसलों की उन्नति के लिए एम.एस. स्वामीनाथन ने गेहूँ की बेहतरीन किस्म को पहचान कर इस पर कार्य किया और अन्न के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाया।
मैक्सिकन गेहूँ की किस्म के माध्यम से भारत के गेहूँ के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। उनके अन्न संवर्द्धन के कार्य ने क्रांति का रूप ले लिया, जिसे 'हरित क्रांति' का नाम दिया गया।
एम.एस. स्वामीनाथन अनेक पदों पर रहे। उन्होंने सन् 1954 से 1972 तक अद्वितीय काम किए।
सन् 1972 में उन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् का महानिदेशक भी बनाया गया।
वे भारत सरकार में सचिव भी उन्हें 'पद्मश्री', 'पद्म भूषण', 'पद्म विभूषण', 'रमन मैग्सेसे', 'अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस' और 'फोर फ्रीडम' जैसे अनेक अवार्ड्स प्राप्त हुए हैं।
3. डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्तूबर, 1931 को जैनुलाबदीन और आशियम्मा के घर तमिलनाडु के रामेश्वरम् में हुआ था । डॉ. कलाम को बचपन से ही पुस्तकें प्रिय थीं।
जब वे आसमान में हवाई जहाज को उड़ता हुआ देखते थे तो उनका मन करता था कि एक दिन वे भी आसमान में उड़ें। अपनी कर्मठता से वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपास्त्र के प्रोजेक्ट निदेशक बने ।
डॉ. कलाम ने गाइडेड मिसाइल विकास कार्यक्रम के मुख्य कार्यकारी के रूप में भी कार्य किया। डॉ. कलाम प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार तथा डी.आर.डी.ओ. के सचिव भी बने। इसके बाद उन्हें 'भारत का मिसाइलमैन' कहा जाने लगा।
डॉ. कलाम बिना किसी राजनैतिक पृष्ठभूमि के भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। उन्हें वर्ष 1997 में 'भारत रत्न' से विभूषित किया गया। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें 'अग्नि की उड़ान', 'इंडिया 2020', 'इग्नाइटेड माइंड्स', 'मिशन इंडिया' आदि प्रमुख हैं ।
4. डॉ. जगदीशचंद्र बसु
डॉ. जगदीशचंद्र बसु का जन्म 30 नवंबर, 1858 को हुआ था। प्रारंभ से ही उनको पेड़-पौधों से बेहद लगाव था। उन्होंने पौधों की संवेदना को रिकॉर्ड करने के लिए 'क्रेस्कोग्राफ' का आविष्कार कर दुनिया को यह बताया कि पौधे भी संवेदनाएँ व्यक्त करते हैं।
इसके लिए उन्होंने पौधे को ब्रोमाइड के जहरीले घोल में डुबोकर बाहर निकाला। यंत्र में यह दिखाई दिया कि ब्रोमाइड के घोल में डुबोने के बाद पौधा ऐसे छटपटाने लगा, जैसे कोई प्राणी मौत से लड़ते हुए छटपटाता है।
उन्होंने ही सूर्य से आनेवाले विद्युत् चुंबकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था। इसकी पुष्टि सन् 1944 में कर दी गई। सन् 1920 में उन्हें रॉयल सोसाइटी का फेलो चुना गया।
उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं। उन्हें अनेक सम्मान मिले। सरकार ने उन्हें 'नाइट सर' की उपाधि से भी सम्मानित किया। 23 नवंबर, 1937 को इस महान् वैज्ञानिक का निधन हो गया ।
5. डॉ. चंद्रशेखर वेंकट रमन
डॉ. चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु में हुआ था। प्रतिभासंपन्न होने के कारण मैट्रिकुलेशन की परीक्षा 11 साल में और एफ.ए. की परीक्षा केवल 13 साल में, वह भी छात्रवृत्ति के साथ, उत्तीर्ण कर ली थी।
सन् 1904 में उन्होंने भौतिक विज्ञान में 'स्वर्ण पदक' के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया। एम.ए. में प्रवेश लेने के बाद वे कॉलेज की प्रयोगशाला में ही डूबे रहने लगे।
उन्होंने कोलाहल, वाद्ययंत्रों की ध्वनि से कई नवीन यंत्रों का आविष्कार किया सन् 1924 में उन्हें 'रॉयल सोसाइटी' का सदस्य बनाया गया।
उन्होंने 'रमन प्रभाव' की खोज 28 फरवरी, 1928 को की और अगले ही दिन उसकी घोषणा भी कर दी। धीरे-धीरे विश्व की सभी प्रयोगशालाओं में 'रमन प्रभाव' पर अन्वेषण होने लगा। सन् 1930 में उन्हें इस खोज के लिए भौतिकी के क्षेत्र में 'नोबेल पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इसके बाद भी उन्हें अनेक पुरस्कार मिले, जिनमें 'लेनिन शांति पुरस्कार' एवं 'भारत रत्न' प्रमुख हैं। 21 नवंबर, 1970 को उनकी मृत्यु हुई ।
6. श्रीनिवास रामानुजन
महान् गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने मात्र 33 वर्ष की आयु में गणित की विधिवत् शिक्षा पाए बिना ही अनेक आश्चर्यचकित करने वाली खोजें कीं। उनका जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु में हुआ था ।
बाल्यावस्था से ही वे गणित की संख्याओं से खेलते थे। सन् 1907 में उन्होंने प्राइवेट परीक्षा दी, लेकिन वहाँ भी गणित को छोड़कर अन्य विषयों में अनुत्तीर्ण रहे। फिर उनकी शिक्षा यहीं समाप्त हो गई।
विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए उन्होंने गणित में अपना शोध जारी रखा। रामानुजन ने मद्रास में रहते हुए अपना पहला शोधपत्र 'जर्नल ऑफ इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी' में प्रकाशित किया और अपने द्वारा खोजी गई प्रमेयों की सूची प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी को भेजी।
हार्डी ने उनकी प्रतिभा पहचानी और उन्हें कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में बुला लिया । उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर गणित के अनेक सूत्रों की खोज की। 26 अप्रैल, 1920 को अल्पायु में उनका निधन हो गया ।
7. डॉ. बीरबल साहनी
डॉ. बीरबल साहनी विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक सच्चे देशभक्त, सफल अध्यापक एवं पुरा वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञ थे। उनका जन्म 14 नवंबर, 1891 को हुआ था।
उन्हें बचपन से ही वैज्ञानिक शिक्षा का वातावरण मिला। उन्हें वनस्पतिशास्त्री प्रो. शिवराम कश्यप एवं प्रो. सर अल्बर्ट चार्ल्स स्वीर्ड का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ । उन्हें लंदन विश्वविद्यालय से एम.एस-सी. और डी.एस-सी. उपाधियाँ तथा रॉयल सोसाइटी से शोध के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त हुई।
सन् 1929 में लंदन विश्वविद्यालय ने उन्हें 'डॉक्टरेट' की उपाधि से विभूषित किया। यह सम्मान इन्हें 'फॉसिल- प्लांट्स-प्रस्तरी भूत वृक्ष' नामक थीसिस पर प्राप्त हुआ। सन् 1929 में वे भारत लौटे और बनारस विश्वविद्यालय में वनस्पतिशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हो गए।
10 अप्रैल, 1949 में उनका देहावसान हो गया। बीरबल साहनी की स्मृति में विज्ञान के विविध क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वाले वैज्ञानिकों को 'बीरबल साहनी स्मृति पुरस्कार' प्रदान किए जाते हैं।
8. भास्कराचार्य
भास्कराचार्य के पिता महेश्वर स्वयं गणित, वेदों तथा शास्त्रों के आचार्य थे। भास्कराचार्य में भी ये गुण बचपन से ही आ गए थे।
उन्होंने न्यूटन से बहुत पहले पूरे विश्व को यह बता दिया था कि पृथ्वी में प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचने की अद्भुत शक्ति है।
उन्होंने 'करण कौतूहल' नामक ग्रंथ की भी रचना की है। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है।
उन्होंने 'सूर्य सिद्धांत' तथा 'लीलावती' की रचना छंदों में की है। यूरोपीय विद्वानों ने भी भास्कराचार्य के ग्रंथों और उनके सूत्रों की प्रशंसा की है।
उस समय दूरबीन आदि का आविष्कार तो हुआ नहीं था, इसलिए भास्कराचार्य रात में ही आँखों से तथा कभी-कभी बाँस की नली की सहायता से ग्रहों और नक्षत्रों का निरीक्षण करते थे।
ऐसे महान् वैज्ञानिक का निधन मात्र पैंसठ वर्ष की आयु में सन् 1185 में हुआ। अद्भुत अन्वेषणों और रचनाओं के कारण उनका नाम इस वसुंधरा पर सदैव देदीप्यमान रहेगा और नए लोगों का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।
9. डॉ. मेघनाद साहा
डॉ. मेघनाद साहा विश्व के एक प्रसिद्ध खगोलविज्ञानी थे । वे एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उनका जन्म 6 अक्तूबर, 1893 को हुआ था ।
सन् 1913 में उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से गणित विषय के साथ स्नातक किया। सन् 1915 में वे एम.एस-सी. में पहले स्थान पर रहे।
कॉलेज में अध्ययन के दौरान ही उनका संपर्क सुभाषचंद्र बोस और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं से हुआ।
सन् 1917 में वे कोलकाता के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंस में प्राध्यापक नियुक्त हो गए।
सन् 1927 में उन्हें लंदन के रॉयल सोसायटी का फेलो बनाया गया। इसके बाद वे इलाहाबाद चले आए।
उन्होंने 'साइंस एंड कल्चर' नामक जर्नल की स्थापना की और इसके संपादक भी रहे। सन् 1947 में उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स की स्थापना की, जो बाद में उनके नाम पर 'साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स' हो गया।
उन्होंने अपने संस्थान में भी सन् 1950 में पहला साइक्लोट्रोन स्थापित किया।
10. डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर, 1860 में हुआ। वे विश्व के महान् इंजीनियरों में से एक हैं। उनका कर्मठ एवं संघर्षपूर्ण जीवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक आदर्श है ।
डॉ. विश्वेश्वरैया का जन्म दक्षिण भारत में सन् 1860 एक गरीब परिवार में हुआ था उन्होंने इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करके पी-एच. डी. की डिग्री प्राप्त की ।
सन् 1884 में उन्हें बंबई सरकार ने सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त कर दिया । नासिक में उन्होंने सक्खर बाँध का निर्माण कर सिंध के लिए जल-कल की व्यवस्था की।
इसके बाद उन्होंने बंगलौर, पूना, मैसूर, कराची, बड़ौदा, ग्वालियर, इंदौर, कोल्हापुर, साँगली, सूरत, नासिक, नागपुर और बीजापुर में पानी व नालियों की व्यवस्था की।
सिंचाई के साधनों का विस्तार करने में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा; विज्ञान व तकनीकी क्षेत्र के विकास के लिए कई कारखानों का निर्माण कराया।
शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा । उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना की।
11. डॉ. राजा रामण्णा
डॉ. राजा रामण्णा को 'भारत के परमाणु कार्यक्रम का पिता' माना जाता है। वे अनेक वर्षों तक भारत के परमाणु कार्यक्रमों से जुड़े रहे।
उन्होंने अपने प्रयासों से देश में अनेक कुशल वैज्ञानिक तैयार किए । उनका जन्म 28 जनवरी, 1925 को कर्नाटक में हुआ । उनकी प्रारंभिक शिक्षा बैंगलोर में हुई ।
उन्हें भौतिकी के साथ-साथ साहित्य एवं शास्त्रीय संगीत में भी रुचि थी। उन्होंने प्रारंभ में अपना अध्ययन साहित्य एवं संगीत के साथ ही किया।
वर्ष 1954 में उन्होंने परमाणु भौतिकी में पी-एच.डी. और किंग्स कॉलेज लंदन से एल. आर. एस. एम. किया। उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया और केंद्र में रक्षा राज्यमंत्री भी रहे।
उन्हें 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया। वे देश के पहले रिसर्च रिएक्टर 'अप्सरा' की स्थापना से भी जुड़े।
उन्होंने कई युवा वैज्ञानिकों एवं तकनीकीविदों की एक पीढ़ी तैयार की। उस पीढ़ी के माध्यम से परमाणु एवं अन्य क्षेत्रों में प्रगति हुई । 24 सितंबर, 2004 को उनका निधन हो गया।
12. डॉ. विक्रम साराभाई
डॉ. विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है। उनका जन्म 12 अगस्त, 1919 को गुजरात के अहमदाबाद में अत्यंत संपन्न परिवार में हुआ ।
उन्हें सन् 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए ट्रिपोस भी दिया गया। सन् 1942 में उनका विवाह प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई से हुआ ।
भारत में अधिक-से-अधिक युवाओं को विज्ञान की ओर प्रेरित करने के लिए उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण काम किए।
इनमें सन् 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था की स्थापना सबसे महत्त्वपूर्ण है । वे परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी थे।
एक विमान दुर्घटना में प्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी भाभा की आकस्मिक मृत्यु के बाद उन्होंने मई 1966 में परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष पद सँभाला।
वर्ष 1962 में उन्हें 'शांतिस्वरूप भटनागर पदक', 1966 में 'पद्म भूषण' तथा 1972 में मृत्योपरांत ‘पद्म विभूषण' सम्मान दिया गया। इनका निधन 30 दिसंबर, 1971 को हुआ ।
13. डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर
डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर का जन्म 21 फरवरी, 1894 को हुआ था। वे एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारत में राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई।
उन्हें 'भारत में राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं का जनक' भी कहा जाता है। उनका बचपन इंजीनियर नाना के घर पर बीता ; इसलिए इनकी रुचि स्वतः ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी की ओर आकर्षित हो गई।
यहीं से उनमें काव्य और कविता का शौक भी उत्पन्न हुआ । उन्हें 'दयाल सिंह ट्रस्ट' से छात्रवृत्ति मिली।
उन्होंने नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की स्थापना में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। सन् 1951 में उन्होंने तेल कंपनियों से 'ऑयल रिफाइनरीज' स्थापित करने के लिए एक सदस्यीय आयोग का गठन किया।
उन्हें 1941 में 'नाइटहुड' की उपाधि दी गई और सन् 1954 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया।
1 जनवरी, 1955 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् ने उनके सम्मान में सन् 1958 में ‘शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार' की स्थापना की।
14. सत्येंद्रनाथ बोस
सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को कलकत्ता में हुआ था । उन्होने क्वांटम फिजिक्स में अतुलनीय योगदान दिया।
फिजिक्स में बोसॉन नामक अणु का नाम सत्येंद्रनाथ बोस के नाम को फिजिक्स में अविस्मरणीय रखने के लिए दिया गया है ।
वे 1915 में एम.एस-सी. गणित की परीक्षा में सर्वप्रथम रहे और फिजिक्स के प्राध्यापक बने । उन्होंने 'प्लैंक लॉ एंड क्वांटम' नाम का शोधपत्र अल्बर्ट आइंस्टीन को भेजा।
आइंस्टीन शोधपत्र से बेहद प्रभावित हुए और फिर उन्होंने सत्येंद्रनाथ बोस के साथ मिलकर अनेक सिद्धांतों पर कार्य किया।
आइंस्टीन ने इस पर कुछ और शोध करते हुए इसे संयुक्त रूप से 'जीट फॉर फिजिक' में प्रकाशित कराया।
इस शोधपत्र ने क्वांटम भौतिकी में 'बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी' नामक एक नई शाखा की नींव डाली।
वर्ष 1958 में उन्हें रॉयल सोसायटी का फेलो चुना गया और राष्ट्रीय प्रोफेसर नियुक्त किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया। वर्ष 1974 में उनका निधन हो गया।
15. डॉ. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर, 1910 को लाहौर में हुआ था । उन्होंने सन् 1930 में भौतिकी विषय में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
इसके बाद वे भारत सरकार की ओर से कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए चले गए। उन्होंने सन् 1933 में पी-एच.डी. पूरी की।
उन्होंने 'थ्योरी ऑफ ब्राउनियन मोशन', 'थ्योरी ऑफ द इल्लुमिनेशन एंड द पोलारिजेशन ऑफ द सनलिट स्काई', 'सापेक्षता और ब्लैक होल' के गणितीय सिद्धांतों पर भी काम किया।
उन्होंने 'चंद्रशेखर लिमिट' की खोज की, जिसके लिए उन्हें वर्ष 1983 में 'नोबेल पुरस्कार' प्रदान किया गया था। 'चंद्रशेखर लिमिट' के माध्यम से वे पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए थे।
इसके अंतर्गत उन्होंने तारे कैसे जन्म लेते हैं, कैसे मर जाते हैं और कैसे बौने तारे बनते हैं। इन पर, अध्ययन एवं खोज की। सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर एक श्रेष्ठ अध्यापक थे।
उन्हें अनेक महत्त्वपूर्ण सम्मानों से विभूषित किया गया। 21 अगस्त, 1995 को शिकागो में ही उनका निधन हो गया।
16. डॉ. होमी जहाँगीर भाभा
भारत को परमाणु संपन्न देश बनाने का श्रेय अद्भुत वैज्ञानिक डॉ. होमी जहाँगीर भाभा को जाता है। उनका जन्म 30 अक्तूबर, 1909 को बंबई में हुआ था।
सन् 1934 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। पी-एच.डी. के दौरान उन्हें 'आइजक न्यूटन फेलोशिप' मिली।
उनके कारण ही कृषि उद्योग, औषधि उद्योग तथा प्राणिशास्त्र के लिए आज लगभग 205 रेडियो आइसोटोप उपलब्ध हैं।
डॉ. भाभा को पाँच बार भौतिकी के 'नोबेल पुरस्कार' के लिए नामांकित किया गया। उन्हें 1943 में 'एडम्स पुरस्कार', 1948 में 'हॉपकिंस पुरस्कार', 1954 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया।
उनकी तीन पुस्तकें 'क्वांटम थ्योरी', 'एलिमेंट्री फिजिकल पार्टिकल्स' एवं 'कॉस्मिक रेडिएशन' बेहद चर्चित हैं। 24 जनवरी, 1966 को उनका निधन हो गया।
भारत सरकार ने 12 जनवरी, 1967 को 'टॉम्ब्रे संस्थान' का नामकरण उनके नाम पर 'भाभा अनुसंधान केंद्र' कर दिया।
20 भारतीय वैज्ञानिकों के नाम और उनके आविष्कार की लिस्ट :
भारतीय वैज्ञानिकों के नाम | उनके आविष्कार/खोज की लिस्ट |
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आर्यभट्ट | पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है |
डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन | भारत की हरित क्रांति |
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम | स्वदेशी निर्देशित मिसाइलों का आविष्कार |
डॉ. जगदीशचंद्र बसु | केस्को ग्राफ का आविष्कार किया जिसका उपयोग पौधों में वृद्धि को मापने में किया जाता है। |
डॉ. चंद्रशेखर वेंकट रमन | रमन प्रभाव |
श्रीनिवास रामानुजन | गणितज्ञ विश्लेषण, अनंत श्रृंखला, संख्या पद्धति एवं निरंतर भिन्न अंशों के लिए आश्चर्यजनक योगदान दिया एवं कई सूत्र भी ईजाद किये। |
डॉ. बीरबल साहनी | पेंटोजाइली नामक पौधे की नई प्रजाति की खोज की |
भास्कराचार्य | पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है 'पृथ्वी किसी भी पदार्थ का विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचता है' इस कारण आकाशीय पिंड पृथ्वी पर गिरते हैं। |
डॉ. मेघनाद साहा | थर्मल आयनीकरण समीकरण का विकास किया |
डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया | ब्लॉक सिस्टम का (इन्हें भारतीय इंजीनियरिंग के पिता के भी नाम से जाना जाता है) |
डॉ. राजा रामण्णा | न्यूट्रॉन थर्मलाइजेशन और रिएक्टर डिजाइन मैं योगदान |
डॉ. विक्रम साराभाई | अंतरिक्ष अनुसंधान शुरू किया एवं भारत में परमाणु ऊर्जा विकसित करने में योगदान दिया |
डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर | भटनागर माथुर इंटरफेरेंस संतुलन का प्रतिपादन किया |
सत्येंद्रनाथ बोस | कनों के एक वर्ग की खोज की जिसे बोसॉन के रूप में जाना जाता है। |
डॉ. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर | चंद्रशेखर लिमिट |
डॉ. होमी जहाँगीर भाभा | भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। |
प्रफुल चंद्र राय | योगिक मरक्यूरिक नाइट्राइट |
सलीम अली | गोंग एंड फायर व डेक्कन विधि |
हरगोविन्द खुराना | न्यूक्लिक एसिड में न्यूक्लियोटाइड का क्रम और जीन की खोज की थी |
श्रीराम शंकर अभयंकर | बीजगणित ज्यामिति मे योगदान |
निष्कर्ष - भारतीय वैज्ञानिकों के नाम और उनके आविष्कार, लेख के बारे में :
में आशा करता करता हूँ इस लेख (20 भारतीय वैज्ञानिकों के नाम और उनके आविष्कार | Indian Scientists and their Inventions in Hindi) को पढ़कर आपको भारतीय वैज्ञानिकों के नाम और उनके आविष्कार के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गयी होगी।
अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो कमेंट करके जरूर बताएं।